हिंदी भाषा अपनी अनेक धाराओं के साथ प्रशस्त क्षेत्र में प्रखर गति से प्रकाशित हो रही है। - छविनाथ पांडेय।
 
लघुकथाएं
लघु-कथा, *गागर में सागर* भर देने वाली विधा है। लघुकथा एक साथ लघु भी है, और कथा भी। यह न लघुता को छोड़ सकती है, न कथा को ही। संकलित लघुकथाएं पढ़िए -हिंदी लघुकथाएँप्रेमचंद की लघु-कथाएं भी पढ़ें।

Articles Under this Category

फंदा - सुभाषिनी लता कुमार | फीजी

[फीजी से फीजी हिंदी में लघुकथा]
...

सैलाब | लघुकथा - लक्ष्मी शंकर वाजपेयी

पिता की मृत्यु के बाद के सारे कार्य संपन्न हो चुके थे। अब तेरहवीं होनी थी और अगले दिन मुझे नौकरी पर वापस ग्वालियर रवाना हो जाना था.. बस एक ही डर बार बार मुझे बुरी तरह परेशान कर रहा था और उस दृश्य की कल्पना मात्र से सहम उठता था मैं.. और ये दृश्य था मेरी इस बार की विदाई का ..जब दुख का पहाड़ टूट पड़ा हो..हर बार ग्वालियर रवाना होने के वक्त माँ फूटफूटकर रोने लगती थीं.. और मैं दो तीन दिन अवसाद मे रहता था..मोबाइल भी नहीं थे उन दिनों..। यूं भी कोई भी रिश्तेदार आता तो बातचीत के दौरान माँ के आँसू  ज़रूर निकलते।
...

ज़मीन आसमान | लघु कथा  - रेखा जोशी

आज अंजू सातवें आसमान पर उड़ रही थी ,बार बार वह अपने चाचा जी का धन्यवाद कर रही थी जो उसे शहर के इतने खूबसूरत जगमगाते स्थान पर ले कर आये थे ।
...

एक और महाभारत - संदीप तोमर

वो पांच भाई थे। मझले का नाम भीमा था। दंगे और दंगल दोनो का ही उस्ताद। घर में फाँकें लेकिन पहलवानी का इतना जुनून कि घर का आधा राशन खुद ही निपटा दे। भाई अपने हिस्से का राशन खाने की शिकायत करते तो कहता -"देखना एक दिन इस सारे राशन की कीमत अदा कर दूंगा और यही पहलवानी एक दिन हम सबको मालामाल कर देगी।"
...

मुक्ति - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar

उसे रह-रहकर बीते दिनों की याद आ जाती थी। उसका गला भर आता था और आँखों से आँसू टपकने लगते थे। उसे मुक्त हुए अभी बहुत दिन नहीं बीते थे। उसकी मुक्ति किसी एक की मुक्ति नहीं, बल्कि सारी जाति की मुक्ति थी।
...

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश