आज अंजू सातवें आसमान पर उड़ रही थी ,बार बार वह अपने चाचा जी का धन्यवाद कर रही थी जो उसे शहर के इतने खूबसूरत जगमगाते स्थान पर ले कर आये थे ।
ऐसा खूबसूरत नज़ारा उसने ज़िंदगी में पहली बार देखा था जो उसे किसी परीलोक से कम नही लग रहा था । सुसज्जित दुकानो से लोग थैले भर भर के सामान खरीद रहे थे, ऐसा लग रहा था मानो सब ओर केवल खुशियाँ ही खुशियाँ है ।
वहाँ से बाहर निकलते ही सड़क के उस पार अंजू की नज़र एक भिखारिन पर पड़ी जो अपने नंग धड़ंग दो बच्चों के साथ भीख मांग रही थी । उसे देखते ही एक झटके के साथ वह परीलोक से ज़मीन पर आ गिरी ।
- रेखा जोशी
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