अमिट प्रेम की पीयूष निर्झर
क्षमा दया की सरिता हो।
गीत ग़ज़ल चौपाई तुम हो
मेरे मन की कविता हो॥
ऋद्धि-सिद्धि तुम आदिशक्ति हो
ज्ञानदायिनी माँ सरस्वती हो।
रणचंडी तुम समर क्षेत्र में
रिपुंजय माँ काली हो॥
कृष्ण बांसुरी की तुम धुन हो
नारद की वीणा का स्वर हो।
चक्र सुदर्शन श्री विष्णु के
शिवजी का त्रिशूल प्रखर हो॥
गीता के तुम श्लोक छंद हो
मानस की दोहे चौपाई।
वीणा की तुम झंकृत स्वर हो
सात सुरों की तुम शहनाई॥
गंगा-यमुना का संगम हो
सुरसुरी की निर्मल धारा हो।
हिमगिरि का उत्तुंग शिखर हो
सागर की पावन धारा हो॥
सीता सावित्री अनुसुइया
माँ पार्वती कल्याणी हो।
श्री लक्ष्मी तुम दिव्य रुप हो
माँ स्वरुप अवतरिणी हो॥
जन्मदायिनी - ज्ञानदायिनी
शिक्षा संस्कार की देवी।
रुप अलौकिक चंद्र किरण सा
पालक पोषक जग की सेवी॥
विमल रुप व्याप्त विश्व में
धरा गगन आरती उतारें।
मातृशक्ति तुम देवमणि हो
जनमानस नित पांव पखारे॥
उर्वर धरती की तुम शोभा
नील गगन सा शीश छत्र हो।
चार दिशाओं की ज्वाला हो
जनजीवन का कर्मक्षेत्र हो॥
सदा सत्य का दर्पण तुम हो
पावन पुण्य समर्पण तुम हो।
पूजनीय हैं चरण तुम्हारे
पावन पूजन अर्चन तुम हो॥
होली और दिवाली तुम हो
ईदगाह की रौनक तुम हो।
ईस्टर की प्रार्थना तुम्हीं हो
प्रकाश पर्व का गौरव तुम हो॥
पुण्य धरा की नारी तुम हो
हे माँ! जन कल्याणी तुम हो।
नेह स्नेह की बलिबेदी हो
मेरे मन की वाणी तुम हो॥
-आर सी यादव
दिल्ली, भारत
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