बकरी 

रचनाकार: हलीम आईना

आदर्शों के 
मेमनों की
बलि

सारे-आम 
हो 
रही है,

तभी तो--
गाँधी जी की 
बकरी 

सुबक-सुबक कर 
रो
रही है। 

- हलीम आईना