हिंदी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूर्ण मानवता के लिये बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है। - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।

डॉ दिविक रमेश की पाँच कविताएं  (काव्य)

Print this

Author: दिविक रमेश 

दो बच्चे


दो बच्चे 

  
एक बच्चा खेल रहा है 
दूसरा 
खिला रहा है। 

एक 
ले रहा है मजा, 
दूसरा 
घर चला रहा है।


#


नहीं आया 

   
अब जो नहीं भाया तो नहीं भाया।
मतलब औरों की गिराकर अपनी लगाना
सीढ़ी।
अब जो नहीं आया तो नही आया।

#


ईंट और ईंट 

उसने ईंट को 
ईंट कहा 
और बुनियाद में चिन दिया।

उसने ईंट को 
हथियार कहा 
और 
किसी के सिर पर 
जड़ दिया।

#


ऐसी-तैसी 

कसम खाने से ही अगर
आना है यकींन 
तो ऐसी-तैसी ऐसे यकींन की। 

#

लपक ही लेता
     
आकर्षक तो बहुत हैं फल
कि लपक लूं सारे।

लपक ही लेता
अगर नहीं पढ़ी होती
दैत्यों की कहानियां, किस्से चुडैलों के
बावजूद इस शक के
कि होते भी हैं कि नहीं वे।

--दिविक रमेश 
[ बुरी खबर के बावजूद ]

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश