हिंदी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूर्ण मानवता के लिये बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है। - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।

नारी (काव्य)

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Author: रति चौबे

कहते मुझे नारी
लता सी कोमल
जहां मिला ठोस आधार
लता सी विश्वास कर
लिपटती जाऊं
जड़े मेरी परिपक्व
छोड़ूं ना वो स्थल
पर--
निशब्द
मूक
अशक्त
नहीं मैं
अद्भुत ईश्वरीय कृति हूँ--
महारानी बन शासन
करूं मै--
बनूं कोमलाग्नि लावण्या
पुरुषों को करूं मौन
विधोत्तमा बन रचूं मैं--
पुस्तकें
रहूं घूंघट की ओट में
मांथे पे लागा बिंदी
गृहिणी सी लजाती
माँ, भार्या, भगिनी, पुत्री
प्रेमिका बनी
पर रही बस नारी
मुझे रच विधाता
चकरा गया
जो ना कटे आरि से
ऐसी बनी मैं नारी
बस, नारी

-रति चौबे, भारत

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