एक न एक दिन खत्म हो जाएंगे ये रास्ते भी
रह जायेगा बाकी..'मिलना' किसी का ही !
यूं तो कह ही दिया था 'सब कुछ'.. बहुत कुछ
रह जायेगा बाकी..'किसी' से 'अनकहा' ही !
टालते कब तक, दहलीज से गुजरना ही पड़ा
रह जायेगा बाकी..किसी की राह तकना ही !
ठोकरें कुछ वक्त ने दी, खुद नासमझ से भी रहे
रह जायेगा बाकी..मेरा गिरकर संभलना ही !
एक दौर था वो, बहकर उसी में साथ चल दिए
रह जायेगा बाकी..मेरा खुद का 'ठहरना' ही !
लिखते रहे खुद को, कोई किस्सा समझकर ही
रह जायेगा बाकी..वो दिल का 'न कहना' ही !
यूं ही उम्र कटती रही, जीते रहे 'रिश्तें' सभी
'मनसी', रह जायेगा बाकी..हद से गुजरना ही !
नमिता गुप्ता 'मनसी'
उत्तर प्रदेश, मेरठ
ई-मेल : namitagupta2873@gmail.com