देखा है प्रत्यंग तुम्हारा, जो कहते थे;
जो सेवक-से साथ सर्वदा ही रहते थे;
जो अपने को बता रहे अवतार तुम्हारा;
जो कुछ हो तुम वही, कहें जो मैं हूँ सारा;
'भक्त' नहीं क्या विषय यह, अद्भुत और अनूप है,
समझ सके वे भी नहीं, कैसा तेरा रूप है !
-गुरुराम भक्त 'विशारद'