जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।

प्रेम की चार कवितायें (काव्य)

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Author: डॉ मनीष कुमार मिश्रा

जो भूलती ही नहीं

प्याज़ी आखोंवाली
वह साँवली लड़की
जो भूलती ही नहीं
आ जाती है जाने कहाँ से?
सूखे हुए मन को
भीगा हुआ सुख देने।

वह सतरंगी ख़्वाबों का
शामियाना तानती
आंखों में संकोच के साथ
नशीले मंजर उभारती
उसका लिबास
बहारों का तो
बातें अदब की।

मस्ती में नाचती
उसकी पतंगबाज़ आँखें
मानो कोई शिकार तलाश रही हों
रंग और गंध में डूबी
उस शोख़ को
इश्क की नजर से देखना
एक आंखों देखा गदर होता।

उसकी तरफ प्रस्थान
कभी सकारात्मक अतिक्रमण लगा
तो कभी
बर्बादी का मुकम्मल रास्ता
पर प्रेम में जरूरी
कुछ लापरवाहियों के साथ
कहना चाहूँगा कि
जो प्रेम करते हैं
उनके लिए
तथ्य के स्तर पर ही सही
पर एक कारण
हमेशा शेष रहता है
जो दर्द को भी
एक ख़ास तेवर दे देता है।

वह जंगली मोरनी
मेरे लिए हमेशा ही
एक हिंसक अभियान सी रही
उसकी बाहों की परिधि में
मेरी ऐसी निरंतरता
असाधारण थी
सचमुच !!
कितना संदिग्ध
और रहस्यमय होता है
प्रेम!!!


(2)

उस ख़्वाब के जैसा

तुम्हारे मेरे मन के बीच
मानो कोई गुप्त समझौता था
अछूते कोमल रंगों से लिखा
जिसमें कि
किसी भी परिवर्तन की
कोई ज़रूरत नहीं थी।

उस समझौते से ही
हमने एक रिश्ता बुना
जिसके बारे में
यह भरोसा भी रहा कि
वह किसी को
नज़र नहीं आयेगा।

वह रिश्ता !
रोशनी का तिलिस्म था
दिल की हदों के बीच
एक अबूझ पहेली जैसा
उस ख़्वाब के जैसा ही
कि जिसका पूरा होना
हमेशा ज़रूरी लगता है।


(3)

निषेध के व्याकरण

उसकी चंचल आखों में
कौतूहल का राज था
निषेध के व्याकरण
उसने नहीं पढ़े थे
वह वहाँ तक जाना चाहती
कि जिसके आगे
कोई और रास्ता नहीं होता।

वह चिड़िया नहीं थी लेकिन
उसकी आखों में
चिड़िया उड़ती
अपनी पसंद की हर चीज़ को
वह जी भरकर देखना चाहती
इच्छाओं की पतवार वाली
वह एक नाव होना चाहती।

उसकी नज़र
बाँधती थी
उसकी मुस्कान
आँखों से ओठों पर
फ़िर कानों तक फैलकर
सुर्ख लाल होती
उसके साथ मेरे सपनों की
उम्र बड़ी लंबी रही।

उसे देखकर
यक़ीन हो जाता कि
कुछ चीज़ों को
बिलकुल बदलना नहीं चाहिये
उसे देख
मेरी आँखें मुस्कुराती
और कोई दर्द
अंदर ही अंदर पिघलता।


(4)

वह सारा उजाला

तुम्हारी स्मृतियों में ही क़ैद रहा
वह सारा उजाला
कि जिनसे अंखुआती रहीं
धान के बिरवे की तरह
कुछ लालसायें
जिनका गहरा निखार
समझाता रहा कि
अनुभव निर्दोष होता है।

ये लालसायें
मेरे पास आराम से रहती हैं
औसत सालाना बारिश की तरह
लेकिन
भलमनसाहत में कभी-कभी
सोचता हूँ कि
क्या प्रेम
एक सुंदर ग्रहण है?

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