जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

जड़ें (काव्य)

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Author: ममता मिश्रा 

जड़ों में गढ़ के पड़े रहने से 
नवांकुर नहीं फूटते 
जैसे जागने पर स्वप्न नहीं टूटते 
वह तो टूटा करते हैं 
सोने से !

जड़ों को पकड़िए मगर 
ऊपर चढ़ने के लिए 
आगे बड़ने के लिए 
ना कि 
रुक कर सड़ने के लिए !!

जड़े सिखाती हैं 
समर्पण, धेर्य
पालन, प्रेम
और देती हैं पहचान 
जड़ आपकी संस्कृति,
आपकी गौरवान्वित सभ्यता,
अब चाहती है आपसे 
उसका भटका हुआ मान 
उसका बिसरा दिया 
स्वाभिमान !!!

- ममता मिश्रा 
  नीदरलैंड्स

*ममता मिश्रा नीदरलैंड्स की निवासी हैं और हिन्दी में भावपूर्ण रचनाएँ लिखती हैं। आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।

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