किस  डोरी  किस  धागे  से  बंधे  हैं  हम ,
डोरी  खिंचती भी  नहीं  और  ढीली  भी  नहीं  पड़ती...
ढील  तुमने  भी  थोड़ी  छोड़ी  है,
थोड़ी  मैंने  भी  दे  रखी  है...
हाथ  से  छोड़ा  भी  नहीं  किसी  ने,
और  खींच के  तोड़ा  भी  नहीं  हमने..
हाथ  से  छोड़ डोरी  को  हमने,
खूंटी पर  नहीं  बाँधा  था ..
हमारे  हाथों  में  ही  सलामत 
ये  रहे, यही  एक  इरादा  था ..
 
हाथों में  डोरियाँ भले  बढ़ाते  चले ,
पर  इस  डोरी  पे  न  कोई  वजन  डालते  मिले ..
यूँ  ही  नहीं  डोरी  को  अब  तक  सलामत  रखा  है,
इस पर एक  दुनिया  बसाने  का  सपना  सजा  रखा  है...
- नम्रता सिंह 
 ई-मेल: singh.namrta2390@gmail.com