बगिया में है एकछत्र राज
इत्र की दुनिया का सरताज
गुलदस्ते में अलग रुआब
क्या सखि साजन न सखि गुलाब
नदिया में वह सैर कराये
वर्षा हो तो खूब इतराये
जिधर का रुख हो उधर बहाव
क्या सखि साजन न सखि नाव
प्राणी जगत ताप से व्याकुल
हर पल गर्मी करती आकुल
तपते तन मन का रखे ख्याल
क्या सखि साजन न सखि तरणताल
-स्मिता श्रीवास्तव
भारत