हम खड़े होंगे कभी भीड़ में कभी हम अकेले
कभी हम मरुथल में होंगे कभी फूलों से सजे मेले।
हमें कभी कोई धक्का देगा और कोई धिक्कारेगा
कोई कभी प्रताड़ित करेगा और कोई दुत्कारेगा।
मन में कभी हिंसा बसकर घोर घृणा को पालेगी
कभी कोई याद आकर रह-रह मन को सालेगी।
हम जैसे भी हों, जहाँ भी हो, सहिष्णु बनाये रखना
हे प्रभु हमे हर हाल में मनुष्य बनाये रखना।
-विजय कुमार सिंह, ऑस्ट्रेलिया