भारतेंदु और द्विवेदी ने हिंदी की जड़ पाताल तक पहुँचा दी है; उसे उखाड़ने का जो दुस्साहस करेगा वह निश्चय ही भूकंपध्वस्त होगा।' - शिवपूजन सहाय।
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हिंदी साहित्य में स्त्री आत्मकथा लेखन विधा का विकास  - भारत-दर्शन संकलन

हिंदी में अन्य गद्य विधाओं की भाँति आत्मकथा विधा का आगमन भी पश्चिम से हुआ। बाद में यह हिंदी साहित्य में प्रमुख विधा बन गई। नामवर सिंह ने अपने एक व्याख्यान में कहा था कि ‘अपना लेने पर कोई चीज परायी नहीं रह जाती, बल्कि अपनी हो जाती है।' हिंदी आत्मकथाकारों ने भी इस विधा को आत्मसात कर लिया और आत्मकथा हिंदी की एक विधा के रूप में विकसित हुई।
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