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विजय कुमार सिंह | ऑस्ट्रेलिया | Profile & Collections
विजय कुमार सिंह का जन्म 13 मार्च 1952 खदाना, बुलन्दशहर में हुआ था। आपकी माता जी का नाम स्वर्गीया श्रीमती प्रेमवती व पिता जी का नाम स्वर्गीय महेन्द्र पाल सिंह है।
आपने काशी हिन्दू से बी.एससी. और मेरठ विश्वविद्यालय से विधि की स्नातक डिग्री ली। 1976 से बुलन्दशहर में अधिवक्ता रहे व साथ ही हिंदी में एम.ए. की। 1985 से उत्तर प्रदेश श्रम विभाग में श्रम प्रवर्तन अधिकारी रहे।
आप 2003 से परिवार के साथ सिडनी में निवास कर रहे हैं।
आपने 2004 से लेखन आरम्भ किया। अब तक सात काव्य संकलन वल्लकी (2009) श्रीमती कुसुम चौधरी के साथ, स्पन्दन (2010), स्तवन (2011), संगिनी (2013), अल्पना (2014), उषोराग (2018), पूर्णिमा (2019) और नौ सौ पृष्ठों से अधिक का उपन्यास ‘ऋण मुक्त' दो भागों में (2019) में प्रकाशित व पाँच लंबी कहानियाँ हिंदी प्रतिलिपि पर प्रकाशित हैं।
ई-मेल: vksingh52@hotmail.com
विजय कुमार सिंह | ऑस्ट्रेलिया's Collection
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इक अनजाने देश में
इक अनजाने देश में जब भी, मैं चुप हो रह जाता हूँ,अपना मन उल्लास से भरने, देश तुझे ही गाता हूँ|शुभ्र हिमालय सर हो मेरा,सीना बन जाता विंध्याचल|नीलगिरी घुटने बन जाते,पैर तले तब नीला सागर|दाएँ में कच्छ को भर लेता, बाएँ मिजो भर जाता हूँ,अपना मन उल्लास से भरने,देश तुझे ही गाता हूँ|श्वासों में तब तेरा समीरण,धमनी में तेरा ही नद्जल|आँखों में आकाश हो तेरा,कानों में गाती फिर कोयल|रोम मेरे पादप जाते, वन बन कर सज जाता हूँ,अपना मन उल्लास से भरने, देश तुझे ही गाता हूँ|स्मृति में मैं सब भर लेता,तेरी थाती महिमा गौरव|संत तपस्वी त्यागी ज्ञानी,जिनसे जग में तेरा सौरभ|मैं अपने मन श्रद्धा भरकर, हरपल शीश नवाता हूँ,अपना मन उल्लास से भरने,देश तुझे ही गाता हूँ|
आ जा सुर में सुर मिला
आ जा सुर में सुर मिला ले, यह मेरा ही गीत है,एक मन एक प्राण बन जा, तू मेरा मनमीत है।सुर में सुर मिल जाए इतना, सुर अकेला न रहे,मैं भी मेरा न रहूँ और, तू भी तेरा न रहे,धड़कनों के साथ सजता, राग का संगीत है,एक मन एक प्राण बन जा, तू मेरा मनमीत है।