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नीरज के हाइकु
जन्म मरण
समय की गति के
हैं दो चरण
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किसको मिला
वफा का दुनिया में
वफा ही सिला
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वो हैं अकेले
दूर खड़े होकर
देखें जो मेले
#
मेरी जवानी
कटे हुये पंखों की
एक निशानी
#
वो है अपने
देखें हो मैंने जैसे
...
कोई नहीं पराया
कोई नहीं पराया, मेरा घर संसार है।
मैं ना बँधा हूँ देश-काल की जंग लगी जंजीर में,
मैं ना खड़ा हूँ जाति-पाति की ऊँची-नीची भीड़ में,
मेरा धर्म ना कुछ स्याही-शब्दों का सिर्फ गुलाम है,
मैं बस कहता हूँ कि प्यार है तो घट-घट में राम है,
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