समस्त आर्यावर्त या ठेठ हिंदुस्तान की राष्ट्र तथा शिष्ट भाषा हिंदी या हिंदुस्तानी है। -सर जार्ज ग्रियर्सन।

वाचस्पति पाठक | Profile & Collections

वाचस्पति पाठक का जीवन परिचय

वाचस्पति पाठक: हिंदी साहित्य के अद्वितीय योद्धा और संपादक

वाचस्पति पाठक, जिनका जन्म 5 सितंबर को काशी के नवाबगंज मुहल्ले में हुआ था, भारतीय साहित्यिक आंदोलन के एक प्रमुख योद्धा और समर्पित साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं। वह न केवल अपने समय के महत्वपूर्ण कथाकार थे, बल्कि एक प्रभावशाली संपादक और कला-प्रेमी भी थे। उनकी साहित्यिक दृष्टि और संपादन कौशल ने छायावाद युग के सभी प्रमुख रचनाकारों को एक मंच प्रदान किया।

साहित्यिक योगदान और संपादकीय प्रतिभा
वाचस्पति पाठक ने उत्कृष्ट साहित्य को पहचान दिलाने और उसे समाज के बीच लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके संपादन में प्रकाशित 'इक्कीस कहानियां' (1936) और 'नए एकांकी' (1952) साहित्य जगत में मील का पत्थर माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त, उनके दो कहानी संग्रह, 'द्वादशी' और 'प्रदीप', उनकी लेखनी के अनमोल उदाहरण हैं। उन्होंने जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा जैसे साहित्यिक दिग्गजों की श्रेष्ठ रचनाओं का संपादन किया, जो आज भी साहित्यप्रेमियों के लिए अमूल्य धरोहर हैं।

काशी के साहित्यिक नवयुवक
प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद और रायकृष्णदास के साथ काशी के जिन तीन उभरते साहित्यकारों का नाम लिया जाता था, उनमें वाचस्पति पाठक प्रमुख थे। उनके साथ उग्र और विनोदशंकर व्यास का नाम भी जुड़ा।

साहित्यिक संस्थाओं में नेतृत्व
आजादी के बाद, वाचस्पति पाठक को 'अखिल भारतीय हिन्दी प्रकाशक संघ' के पहले संयोजक के रूप में चुना गया। यह उनके नेतृत्व और साहित्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है।

निधन और विरासत
वाचस्पति पाठक का निधन 19 नवंबर, 1980 को प्रयागराज में हुआ। उन्होंने अपने जीवनकाल में हिंदी साहित्य को न केवल समृद्ध किया, बल्कि अपनी संपादन कला और साहित्यिक योगदान के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा भी बन गए।

वाचस्पति पाठक की साहित्य साधना आज भी हिंदी साहित्य के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।

वाचस्पति पाठक's Collection

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अभिभावक 

अपरिचित देश के इस नवीन वासस्थान में शरद् ऋतु का मध्यान्ह; मेरे हृदय के अनिश्चित विषाद सा शून्य था। जिसे संसार में कोई काम नहीं––वह कैसे जीता है?–– विषयशून्य हृदय में यह अचिन्तनीय चिन्ता व्याप्त हुई––अजगर भी जीव है, बेचारा विशालकाय शरीर का स्वामी! तमाच्छादित गहन गिरिसंकुल में उसका निस्पृह निरवलम्ब जीवन कितना वेदनापूर्ण होगा?––करुणार्द्र–हृदय व्याकुल हो उठा। 

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