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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
Articles Under this Category |
गुरु महिमा दोहे - भारत-दर्शन संकलन |
गुरू महिमा पर दोहे |
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हिन्दी दिवस - खाक बनारसी |
अपने को आता है |
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हम स्वेदश के प्राण - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही |
प्रिय स्वदेश है प्राण हमारा, |
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हैरान परेशान, ये हिन्दोस्तान है - अनिल जोशी | Anil Joshi |
हैरान परेशान, ये हिन्दोस्तान है |
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मेरी अभिलाषा | कविता - अनिता बरार | ऑस्ट्रेलिया |
चाहती हूँ आज देना, प्यार का उपहार जग को।। |
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हिन्दी के सुमनों के प्रति पत्र - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' |
मैं जीर्ण-साज बहु छिद्र आज, |
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हमारी हिंदी - रघुवीर सहाय | Raghuvir Sahay |
हमारी हिंदी एक दुहाजू की नई बीवी है |
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हिंदी मातु हमारी - प्रो. मनोरंजन - भारत-दर्शन संकलन | Collections |
प्रो. मनोरंजन जी, एम. ए, काशी विश्वविद्यालय की यह रचना लाहौर से प्रकाशित 'खरी बात' में 1935 में प्रकाशित हुई थी। |
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हिंदी जन की बोली है - गिरिजाकुमार माथुर | Girija Kumar Mathur |
एक डोर में सबको जो है बाँधती |
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हिन्दी भाषा - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh |
छ्प्पै |
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हिन्दी रुबाइयां - उदयभानु हंस | Uday Bhanu Hans |
मंझधार से बचने के सहारे नहीं होते, |
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युगावतार गांधी - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi |
चल पड़े जिधर दो डग, मग में |
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गांधी कविता कोश - भारत-दर्शन |
गांधी कविता कोश - यह गांधी जी की 150वीं जयंती के अवसर पर गांधी जी पर लिखी कविताओं का कोश है। यहाँ यथासंभव सभी प्रमुख साहित्यकारों की गांधी जी पर लिखी गयी रचनाएँ संकलित की जाएंगी। |
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अँग्रेज़ी प्राणन से प्यारी। - बरसाने लाल चतुर्वेदी |
अँग्रेज़ी प्राणन से प्यारी। |
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हिन्दी - गौरी शंकर वैद्य ‘विनम्र’ |
भारत माता के अन्तस की |
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हिंदी हम सबकी परिभाषा - डा० लक्ष्मीमल्ल सिंघवी |
कोटि-कोटि कंठों की भाषा, |
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फिर नये मौसम की | ग़ज़ल - भावना कुँअर | ऑस्ट्रेलिया |
फिर नये मौसम की हम बातें करें |
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अनुपम भाषा है हिन्दी - श्रीनिवास |
अनुपम भाषा है हिन्दी |
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कबीर की हिंदी ग़ज़ल - कबीरदास | Kabirdas |
क्या कबीर हिंदी के पहले ग़ज़लकार थे? यदि कबीर की निम्न रचना को देखें तो कबीर ने निसंदेह ग़ज़ल कहीं है: |
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भटका हुआ भविष्य - अनिल जोशी | Anil Joshi |
उसने मुझे जब हिन्दी में बात करते हुए सुना, |
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हिंदी - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
हिंदी उनकी राजनीति है |
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एक भाव आह्लाद हो ! - डॉ० इंद्रराज बैद 'अधीर' |
थकी-हारी, मनमारी, सरकारी राज भाषा है, |
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खोजिए - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
भीड़ है |
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हिंदी देश की शान - डॉ रमेश पोखरियाल निशंक |
एकता की सूचक हिदी भारत माँ की आन है, |
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ज़िन्दगी इतनी भी आसान नहीं | ग़ज़ल - रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया |
ज़िन्दगी इतनी भी आसान नहीं |
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हिन्दी भारत की भाषा - श्रीमती रेवती |
भाषा हो या हो राजनीति अब और गुलामी सहय नहीं, |
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खेत में तपसी खड़ा है - भैयालाल व्यास |
खेत में तपसी खड़ा है। |
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मेरी मातृ भाषा हिंदी - सुनीता बहल |
मेरी मातृ भाषा है हिंदी, |
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आओ ! आओ ! भारतवासी । - बाबू जगन्नाथ |
आओ ! आओ ! भारतवासी । |
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जय हिन्दी - रघुवीर शरण |
जय हिन्दी ! जय देव नागरी ! जय जय भारत माता। |
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हिन्दी-भक्त - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
सुनो एक कविगोष्ठी का, अद्भुत सम्वाद । |
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कोरोना हाइकु - बासुदेव अग्रवाल नमन |
कोरोनासुर |
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गन्ने के खेतों में हिंदी के आखर - राकेश पाण्डेय |
उन गिरमिटियों की श्रमसाधना को समर्पित जिनके कारण आज हिंदी विश्वभाषा बनी। |
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हस्ताक्षर - राजेश चेतन |
हस्ताक्षर तक हम करते हैं |
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हिंदी की दुर्दशा | हिंदी की दुर्दशा | कुंडलियाँ - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्य। |
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राजभाषा तेरे लिए ..... - जयप्रकाश शर्मा |
राजभाषा तेरे लिए |
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कुछ दोहे - डॉo सत्यवान सौरभ |
अपने प्यारे गाँव से, बस है यही सवाल। |
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मातृभाषा प्रेम पर भारतेंदु के दोहे - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जीवन परिचय | Bharatendu Harishchandra Biography Hindi |
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। |
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कोरोना पर दोहे - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav |
गली-मुहल्ले चुप सभी, घर-दरवाजे बन्द। |
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हिंदी पर दोहे - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
बाहर से तो पीटते, सब हिंदी का ढोल। |
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हिन्दी–दिवस नहीं, हिन्दी डे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
हिन्दी दिवस पर |
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हिन्दी - गयाप्रसाद शुक्ल सनेही |
अच्छी हिन्दी ! प्यारी हिन्दी ! |
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कलयुग | मुक्तक - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
कलयुग में पाई है बस यही शिक्षा |
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हिंदी पर दोहे - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
बाहर से तो पीटते, सब हिंदी का ढोल। |
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हिंदी-प्रेम - काका हाथरसी | Kaka Hathrasi |
हिंदी-हिंदू-हिंद का, जिनकी रग में रक्त |
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आओ साथी जी लेते हैं - अमिताभ त्रिपाठी 'अमित' |
आओ साथी जी लेते हैं |
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बदलकर आंसुओं की धार | गीत - तुलसी |
बदलकर आंसुओं की धार को मैं मुस्कुराती हूँ। |
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रो उठोगे मीत मेरे - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) |
दर्द की उपमा बना मैं जा रहा हूँ, |
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एक भारत मुझमें बसता है - आराधना झा श्रीवास्तव |
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मिट्टी की खुशबू - डॉ अनीता शर्मा |
कोई पूछता है, कौन सा इत्र है? |
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प्रदूषण - बासुदेव अग्रवाल नमन |
बढ़ा प्रदूषण जोर। |
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सिर्फ़ बातें नहीं अब वह बात चाहिए - ममता मिश्रा, नीदरलैंड |
करें कल्याण हिंदी का |
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जिनसे हम छूट गये - राही मासूम रजा |
जिनसे हम छूट गये अब वो जहाँ कैसे हैं |
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ये दुनिया हमें रास आई नहीं | ग़ज़ल - सलिल सरोज |
ये दुनिया हमें रास आई नहीं, चलो आसमाँ में चले |
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