सुनो एक कविगोष्ठी का, अद्भुत सम्वाद । कलाकार द्वय भिडे गए, चलने लगा विवाद ।। चलने लगी विवाद, एक थे कविवर 'घायल' । दूजे श्री 'तलवार', नई कविता के कायल ।। कह 'काका' कवि, पर्त काव्य के खोल रहे थे। कविता और अकविता को, वे तोल रहे थे ।।
शुरू हुई जब वार्ता, बोले हिन्दी शुद्ध । साहित्यिक विद्वान् थे, परम प्रचण्ड प्रबुद्ध ।। परम प्रचण्ड प्रबुद्ध, तर्क में आई तेजी । दोनो की जिह्वा पर, चढ़ बैठी अगरेज़ी ॥ कह 'काका' घनघोर, चली इंगलिश में गाली । संयोजक जी ने गोष्ठी, 'डिसमिस' कर डाली ।।
- काका हाथरसी |