चाहती हूँ आज देना, प्यार का उपहार जग को।।
मुग्ध सपनों के जगत से माँग मैं अरमान लायी, भावनाओ के भवन से साथ मधु के गान लायी।
कंठ से कल कोकिला के मैं मधुर संगीत लेकर विश्व में मधुमास की मधुमय चपल मुस्कान लेकर।
चाहती हूँ मैं क्षितिज के पार का संसार देखूँ, शब्द पर आरूढ़ होकर शून्य का आधार देखूँ।
रात दिन जलती धधकती भूख से जिनकी चितायें, धूल से हैं धूसरित जिनकी सुकोमल भावनायें।
नग्न तन हैं राह पर जो आज अपने कर फैलाये, शापमय जीवन, उबर चिर शांति का वरदान पाये।
चाहती हूँ उनकी सुनाना मैं करुण चित्कार जग को। चाहती हूँ आज देना, प्यार का उपहार जग को।।
- अनिता बरार, ऑस्ट्रेलिया ई-मेल: anita.barar@gmail.com
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