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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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साजन! होली आई है! - फणीश्वरनाथ रेणु | Phanishwar Nath 'Renu' |
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मुक्तिबोध की कविता - गजानन माधव मुक्तिबोध | Gajanan Madhav Muktibodh |
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श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया ।। टेर ।। |
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सूर के पद | Sur Ke Pad - सूरदास | Surdas |
सूरदास के पदों का संकलन - इस पृष्ठ के अंतर्गत सूर के पदों का संकलन यहाँ उपलब्ध करवाया जा रहा है। यदि आपके पास सूरदास से संबंधित सामग्री हैं तो कृपया 'भारत-दर्शन' के साथ साझा करें। |
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हरि संग खेलति हैं सब फाग। |
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मीरा के पद - Meera Ke Pad - मीराबाई | Meerabai |
दरद न जाण्यां कोय |
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मीरा के होली पद - मीराबाई | Meerabai |
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रसखान के फाग सवैय्ये - रसखान | Raskhan |
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मुट्ठी भर रंग अम्बर में - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड |
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प्यार भरी बोली | होली हास्य कविता - जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi |
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घासीराम के पद - घासीराम | Ghasiram Ke Pad |
कान्हा पिचकारी मत मार मेरे घर सास लडेगी रे। |
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वसन्त आया - सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' | Suryakant Tripathi 'Nirala' |
सखि, वसन्त आया । |
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काव्य मंच पर होली - बृजेन्द्र उत्कर्ष |
काव्य मंच पर चढ़ी जो होली, कवि सारे हुरियाय गये, |
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होली आई - होली आई - हर्ष कुमार |
बहुत नाज़ था उसको खुद पर, नहीं आंच उसको आयेगी |
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होली की रात | Jaishankar Prasad Holi Night Poetry - जयशंकर प्रसाद | Jaishankar Prasad |
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