जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

संत दादू दयाल के पद

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 संत दादू दयाल | Sant Dadu Dayal

पूजे पाहन पानी

दादू दुनिया दीवानी, पूजे पाहन पानी।
गढ़ मूरत मंदिर में थापी, निव निव करत सलामी।
चन्दन फूल अछत सिव ऊपर बकरा भेट भवानी।
छप्पन भोग लगे ठाकुर को पावत चेतन न प्रानी।
धाय-धाय तीरथ को ध्यावे, साध संग नहिं मानी।
ताते पड़े करम बस फन्दे भरमें चारों खानी।
बिन सत्संग सार नहिं पावै फिर-फिर भरम भुलानी।


रूप रंग से न्यारा

दादू देखा मैं प्यारा, अगम जो पंथ निहारा।
अष्ट कँवल दल सुरत सबद में, रूप रंग से न्यारा।
पिण्ड ब्रह्माण्ड और वेद कितेवे, पाँच तत्त के पारा।
सत्त लोक जहँ पुरु बिदेही वह साहिब करतारा।
आदि जोत और काल निरंजन, इनका कहाँ न पसारा।
राम रहीम रब्ब नहीं आतम, मोहम्मद नहीं औतारा।
सब संतन के चरन सीस धर चीन्हा सार असारा।

 

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