फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥
बिन करताल पखावज बाजै अणहदकी झणकार रे। बिन सुर राग छतीसूं गावै रोम रोम रणकार रे॥
सील संतोखकी केसर घोली प्रेम प्रीत पिचकार रे। उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे॥
घटके सब पट खोल दिये हैं लोकलाज सब डार रे। मीरा के प्रभु गिरधर नागर चरणकंवल बलिहार रे॥
-मीरा |