करवा चौथ की पौराणिक कथाएँ

रचनाकार: भारत-दर्शन संकलन

Karva Chauth Ki Katahyein

‘करवा चौथ' के व्रत से तो हर भारतीय स्त्री अच्छी तरह से परिचित हैं। यह व्रत महिलाओं के लिए ‘चूड़ियों का त्योहार' नाम से भी प्रसिद्ध है।

करवा चौथ का व्रत, अन्य सभी व्रतों से कठिन माना गया है। महिलाएँ यह व्रत पति-पत्नी के सौहार्दपूर्ण मधुर संबंधों के साथ-साथ पति की दीर्घायु की कामना के उद्देश्य से करती हैं। करवा रूपी वस्तु (कुल्हड़) इस व्रत में सास-ससुर को दान देने या आपस में बदलने का रिवाज है।

कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत किया जाता हैं। विवाहित महिलाएँ पति की सुख, संपन्नता की कामना के लिए गणेश, शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। सूर्य उदय से पहले तड़के 'सरघी' (कुछ पसंद की वस्तु) खाकर सारा दिन बगैर जल ग्रहण किए उपवास रखती हैं एवं ईश्वर कथा-भजन का श्रवण करते हुए सारा दिन व्यतीत करती हैं।पुराण की कथा के अनुसार व्रत का फल तभी हैं जब व्रत करने वाली महिला भूलवश भी झूठ, कपट, निंदा एवं अभिमानवश कोई शब्द न कहे। सुहागिन महिलाओं को चाहिए कि इस पर्व पर सुहाग-जोड़ा पहने, शिव द्वारा पार्वती को सुनाई गई कथा पढ़ें या सुने तथा रात्रि में चाँद निकलने पर चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मणों को दान दें एवं आशीर्वाद ले, तभी व्रत का फल है।

करवा-चौथ की विभिन्न कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें अर्जुन-द्रौपदी की कथा, करवा धोबिन की कथा व वीरवती की कथाएँ प्रमुख हैं।