मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 25

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प्रभु या दास?

बुलाता है किसे हरे हरे,
वह प्रभु है अथवा दास?
उसे आने का कष्ट न दे अरे,

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माँ कह एक कहानी

"माँ कह एक कहानी।"
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?"
"कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी

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मातृ-मन्दिर

भारतमाता का यह मन्दिर, समता का संवाद यहाँ,
सबका शिव-कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ।
नहीं चाहिये बुद्धि वैरकी, भला प्रेम-उन्माद यहाँ,

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अर्जुन की प्रतिज्ञा

उस काल मारे क्रोध के तन कांपने उसका लगा,
मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा।
मुख-बाल-रवि-सम लाल होकर ज्वाल सा बोधित हुआ,

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गुणगान

तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?
सब द्वारों पर भीड़ मची है,

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मैथिलीशरण गुप्त की बाल-कवितायें

मैथिलीशरण गुप्त यद्यपि बालसाहित्य की मुख्यधारा में सम्मिलित नही तथापि उन्होंने कई बाल-कविताओं से हिन्दी बाल-काव्य को समृद्ध किया है। उनकी 'माँ, कह एक कह...

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सरकस | बाल-कविता

होकर कौतूहल के बस में,
गया एक दिन मैं सरकस में।
भय-विस्मय के खेल अनोखे,

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मेरी भाषा

मेरी भाषा में तोते भी राम-राम जब कहते हैं,
मेरे रोम-रोम से मानो सुधा-स्रोत तब बहते हैं।
सब कुछ छूट जाए, मैं अपनी भाषा; कभी न छोडूँगा।

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प्रभु ईसा

मूर्तिमती जिनकी विभूतियाँ
जागरूक हैं त्रिभुवन में;
मेरे राम छिपे बैठे हैं

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भारत-भारती

यहाँ मैथिलीशरण गुप्त की भारत-भारती को संकलित करने का प्रयास आरंभ किया है। विश्वास है पाठकों को रोचक लगेगा।
'भारत-भारती' की प्रस्तावना में स्वयं गुप्तजी ?...

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मंगलाचरण | उपक्रमणिका | भारत-भारती

मंगलाचरण
मानस भवन में आर्य्जन जिसकी उतारें आरतीं-
भगवान् ! भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती।

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भारत वर्ष की श्रेष्ठता | भारत-भारती

भू-लोक का गौरव प्रकृति का पुण्य लीला-स्थल कहाँ ?
फैला मनोहर गिरी हिमालय और गंगाजल जहाँ ।
सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है ,

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हमारा उद्भव | भारत-भारती

शुभ शान्तिमय शोभा जहाँ भव-बन्धनों को खोलती,
हिल-मिल मृगों से खेल करती सिंहनी थी डोलती!
स्वर्गीय भावों से भरे ऋषि होम करते थे जहाँ,

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नर हो न निराश करो मन को

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो

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हमारे पूर्वज | भारत-भारती

उन पूर्वजों की कीर्ति का वर्णन अतीव अपार है,
गाते नहीं उनके हमीं गुण गा रहा संसार है ।
वे धर्म पर करते निछावर तृण-समान शरीर थे,

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ओला | बाल-कविता

एक सफेद बड़ा-सा ओला,
था मानो हीरे का गोला!
हरी घास पर पड़ा हुआ था,

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आदर्श | भारत-भारती

आदर्श जन संसार में इतने कहाँ पर हैं हुए ?
सत्कार्य्य-भूषण आर्य्यगण जितने यहाँ पर हैं हुए ।
हैं रह गये यद्यपि हमारे गीत आज रहे सहे ।

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आर्य-स्त्रियाँ

केवल पुरुष ही थे न वे जिनका जगत को गर्व था,
गृह-देवियाँ भी थीं हमारी देवियाँ ही सर्वथा ।
था अत्रि-अनुसूया-सदृश गार्हस्थ्य दुर्लभ स्वर्ग में,

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हमारी सभ्यता

शैशव-दशा में देश प्राय: जिस समय सब व्याप्त थे,
निःशेष विषयों में तभी हम प्रौढ़ता को प्राप्त थे ।
संसार को पहले हमीं ने ज्ञान-भिक्षा दान की,

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होली - मैथिलीशरण गुप्त

जो कुछ होनी थी, सब होली!
          धूल उड़ी या रंग उड़ा है,
हाथ रही अब कोरी झोली।

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अपनी भाषा

करो अपनी भाषा पर प्यार।
जिसके बिना मूक रहते तुम, रुकते सब व्यवहार।।
जिसमें पुत्र पिता कहता है, पत्नी प्राणाधार,

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 निवेदन

राम, तुम्हें यह देश न भूले,
धाम-धरा-धन जाय भले ही,
यह अपना उद्देश न भूले।

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रवि

अस्त हो गया है तप-तप कर प्राची, वह रवि तेरा।
विश्व बिलखता है जप-जपकर, कहाँ गया रवि मेरा?
- मैथिलीशरण गुप्त

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भारत माता

(राष्ट्रीय गीत)
जय जय भारत माता!
तेरा बाहर भी घर-जैसा रहा प्यार ही पाता॥

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जल, रे दीपक, जल तू

जल, रे दीपक, जल तू।
जिनके आगे अँधियारा है, उनके लिए उजल तू॥
जोता, बोया, लुना जिन्होंने,

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मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt का जीवन परिचय