अस्त हो गया है तप-तप कर प्राची, वह रवि तेरा।
विश्व बिलखता है जप-जपकर, कहाँ गया रवि मेरा?
- मैथिलीशरण गुप्त
[रबीन्द्रनाथ टैगोर को समर्पित मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियाँ]
अस्त हो गया है तप-तप कर प्राची, वह रवि तेरा।
विश्व बिलखता है जप-जपकर, कहाँ गया रवि मेरा?
- मैथिलीशरण गुप्त
[रबीन्द्रनाथ टैगोर को समर्पित मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियाँ]