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काव्य |
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है। |
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ढोल, गंवार... - सुरेंद्र शर्मा |
मैंने अपनी पत्नी से कहा -- |
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तू है बादल - लक्ष्मी शंकर वाजपेयी |
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कृपया अर्थ दीजिये हमें - प्रीता व्यास | न्यूज़ीलैंड |
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देवता तो हूँ नहीं - रमानाथ अवस्थी |
देवता तो हूँ नहीं स्वीकार करता हूँ |
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समय का पहिया - गोरख पांडेय |
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गाँधी - सागर निज़ामी |
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दुनिया - दीवाना रायकोटी |
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दुआ - मौलाना मुहम्मद हुसैन 'आज़ाद' |
आलम है अपने बिस्तरे - राहत पै ख़ाब में, |
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विपर्यय - रंजू मिश्रा |
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कहाँ तक बचाऊँ ये-- | ग़ज़ल - ममता मिश्रा |
कहाँ तक बचाऊँ ये हिम्मत कहो तुम |
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बयानों से वो बरगलाने लगे हैं - डॉ राजीव सिंह |
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नित नई नाराज़गी... | ग़ज़ल - प्राण शर्मा |
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