बहुत बुरों के बीच से, करना पड़ा चुनाव ।
अच्छे लोगों का हुआ, इतना अधिक अभाव ।।
कहते हैं कुछ और वो, करते हैं कुछ और ।
ऐसे जन नायक बने, जनता के सिर मोर ।।
भरी जवानी में हुए घर को छोड़, फ़कीर ।
मरते दम तक भी उन्हें, चुभे मोह के तीर।।
घावों पर रखने लगे, शुद्ध नमक का प्यार
कलयुग में इतने बढ़े, मित्रों के अधिकार ।।
सबको लड़ने ही पड़े, अपने-अपने युद्ध ।
चाहे राजाराम हो, चाहे गौतम बुद्ध ।।
- ज़हीर कुरैशी
[ शोध दिशा 1994]