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Articles Under this Category |
वर्तमान परिदृश्य में हिन्दी - डॉ. सचिन कुमार |
वर्तमान परिदृश्य में हिन्दी समूचे विश्व के आकर्षण का केन्द्र बनती जा रही है। विश्व के लगभग 140 प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में हिन्दी का पठन-पाठन होना एक शुभ संकेत है। आज बाजार में अपना पाँव पसारे कई टी0वी0 चैनलों को लगने लगा है कि हमें अगर भारत में लोकप्रियता अर्जित करनी है और पैसा कमाना है तो यह हिन्दी के बिना संभव नहीं। डिस्कवरी, नेशनल ज्योग्राफिकल चैनल एवं बच्चों के लोकप्रिय चैनल पोगो को अन्ततः अपने प्रसारण का हिन्दी में अनुवाद प्रस्तुत करना ही पड़ा। |
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अद्भुत दोहा - भारत-दर्शन संकलन |
इस दोहे में एक ही अक्षर ‘न’ का प्रयोग किया गया है। |
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जीवन का एक सुखी दिन - श्रीलाल शुक्ल |
जीवन का एक सुखी दिन लगभग पैंतालीस साल पुरानी रचना है। उस दिन के सुखों में एक ऐसा ही सुख है जिसमें बस कंडक्टर एक रुपए का नोट लेकर पूरी की पूरी रेजगारी वापस कर देता है और टिकट की पुश्त पर ‘इकन्नी' का बकाया नहीं लिखता। जाहिर है कि यह रचना उन दिनों की है जब ‘इकन्नी' भी आदान-प्रदान में एक महत्वपूर्ण सिक्के की भूमिका निभाती थी। |
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व्यंग्य चोट करता है, गुदगुदाता है | व्यंग्य - प्रभात गोस्वामी |
साहित्य ने मुझे हमेशा आकर्षित किया है। मैं फक्कड़ भी हूँ, घुमक्कड़ भी हूँ। चिपकू भी हूँ और लपकू भी हूँ इसलिए साहित्य के लिए पूरी तरह फिट हूँ। प्यार में चोट खाकर कवि बना, फिर अपनी कहानी लिखने के लिए कहानीकार बन गया। बचपन से रुड़पट भी रहा सो यात्रा वृत्तान्त भी लिखे। मैं उस दौर का साहित्यकार हूँ जब संपादक बड़ी बेदर्दी से सर (रचना का) काटते थे और मैं कहता था – हुज़ूर अहिस्ता-अहिस्ता। कितनी ही रचनाएँ मेरी आलमारी में अस्वीकृति की पीड़ा से कराहती हुई उम्र क़ैद-सी त्रासदी का शिकार हुईं। कुछ ओझिया महाराज की कचौड़ियों के कागज़ को उपकृत करतीं रहीं। जहाँ लोग कचौड़ी और चाट के साथ मेरी रचनाओं को बड़े मन से चाटते रहे। क्या करें उन दिनों बड़े साहित्यकार घास नहीं डालते थे और सम्पादक दोस्ती नहीं करते थे। रचना छपे तो कैसे छपे? |
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अद्भुत अकल्पनीय अविश्वसनीय - प्रो. राजेश कुमार |
यह 2013 का साल था और मैं गुजरात में निदेशक के पद पर गया था। अपने जिस पूर्ववर्ती से मुझे कार्यभार लेना था, उसने अन्य बातों के अलावा मेरे साथ मामाजी नामक शख्सियत का जिक्र किया और बताया कि उन्होंने मुझे बता दिया था कि मेरा स्थानांतरण 16 फ़रवरी को हो जाएगा। वे बहुत दिनों से अपने स्थानांतरण की कोशिश में थे, जो हो नहीं रहा था। उन्होंने आगे यह भी बताया कि मामाजी वैसे तो नेत्रहीन है, लेकिन उन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त है और वे भविष्य को देख लेते हैं। उनका स्थानांतरण 16 फ़रवरी को ही हुआ था। |
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सिंगापुर में भारत - डॉ संध्या सिंह | सिंगापुर |
भारतीय नाम वाले महत्वपूर्ण रास्तों की कहानी |
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परदेश और अपने घर-आंगन में हिंदी - बृजेन्द्र श्रीवास्तव ‘उत्कर्ष’ |
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था, "भारत के युवक और युवतियां अंग्रेजी और दुनिया की दूसरी भाषाएँ खूब पढ़ें मगर मैं हरगिज यह नहीं चाहूंगा कि कोई भी हिन्दुस्तानी अपनी मातृभाषा को भूल जाएँ या उसकी उपेक्षा करे या उसे देखकर शरमाये अथवा यह महसूस करे कि अपनी मातृभाषा के जरिए वह ऊँचे से ऊँचा चिन्तन नहीं कर सकता।" वास्तव में आज उदार हृदय से, गांधी जी के इस विचार पर चिंतन-मनन करने की आवश्यकता है। हिंदी भाषा, कुछ व्यक्तियों के मन के भावों को व्यक्त करने का माध्यम ही नहीं है बल्कि यह भारतीय संस्कृति, सभ्यता, अस्मिता, एकता-अखंडता, प्रेम-स्नेह-भक्ति और भारतीय जनमानस को अभिव्यक्त करने की भाषा है। हिंदी भाषा के अनेक शब्द वस्तुबोधक, विचार बोधक तथा भावबोधक हैं ये शब्द संस्कृति के भौतिक, वैचारिक तथा दार्शनिक-आध्यात्मिक तत्वों का परिचय देते हैं । इसीलिए कहा गया है- "भारत की आत्मा को अगर जानना है तो हिंदी सीखना अनिवार्य है ।" |
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राजभाषा हिंदी - डॉ० शिबन कृष्ण रैणा |
हर साल हिंदी दिवस 14 सितंबर को मनाया जाता है। स्वतंत्रता- प्राप्ति के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से यह निर्णय लिया था कि खड़ी बोली हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा द्वारा सन् 1953 से संपूर्ण देश में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को 'हिन्दी दिवस' के रूप में मनाये जाने का प्रस्ताव रखा गया, जिसका अनुपालन आज तक बराबर होता आ रहा है। |
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आलोक में स्कूली शिक्षा: भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रासंगिकता - प्रो. सरोज शर्मा |
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