हिंदी भाषा अपनी अनेक धाराओं के साथ प्रशस्त क्षेत्र में प्रखर गति से प्रकाशित हो रही है। - छविनाथ पांडेय।
गीत

गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें।

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अहम की ओढ़ कर चादर - अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'

अहम की ओढ़ कर चादर
फिरा करते हैं हम अक्सर
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देवता तो हूँ नहीं - रमानाथ अवस्थी

देवता तो हूँ नहीं स्वीकार करता हूँ
आदमी हूँ क्योंकि मैं तो प्यार करता हूँ
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समय का पहिया - गोरख पांडेय

समय का पहिया चले रे साथी
समय का पहिया चले!
फ़ौलादी घोड़ों की गति से आग बर्फ़ में जले रे साथी!
समय का पहिया चले!
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