बयानों से वो बरगलाने लगे हैं
चुनावों के दिन पास आने लगे हैं
निशानी गुलामी की है रेलगाड़ी
बता बैलगाड़ी चढ़ाने लगे हैं
मुहब्बत को हम कर सकें ना मुहब्बत
इन्हीं कोशिशों में दिवाने लगे हैं
नयन में लिये मुफ्तखोरी के सपने
हमें मुफ्तखोरी सिखाने लगे हैं
कभी भी ठहरकर नहीं सोचते वो
कि किन कारणों से ठिकाने लगे हैं
नहीं जाति उनकी, नहीं उनका मजहब
तो बेहतर को बदतर बताने लगे हैं
हमें एक होने का अब तक गुमाँ था
हमीं आज बँटने-बटाने लगे हैं
नया दौर है साधु जी, मौलवी जी
सियासी इबादत सिखाने लगे हैं
प्रजातंत्र में जो प्रजा के लिए हैं
प्रजा को ही आँखें दिखाने लगे हैं
बड़ी बात ये है बड़े बोल उनके
प्रजा को भी अब गुदगुदाने लगे हैं
- डॉ राजीव सिंह