आँखों से बहने लगी, गंगा-जमुना साथ । माँ ने पूछा हाल जो, सर पर रख कर हाथ ।।
जिस्मों में तो जां नहीं, न चेहरों पर रंग । देख जवानी आज की, हुआ बुढ़ापा दंग ।।
जीवन को समझा नहीं, ‘रोहित' यह संसार । यह जीवन तो मौत ने, हमको दिया उधार ।।
जीवन में करने लगे, ‘रोहित' सभी दुकान । मोल-भाव में खो गया, हर इक का ईमान ।।
राँझा तो राँझा नहीं, मिले कहाँ से हीर । अब दिल में बसती नहीं, मीरा वाली पीर ।।
तेरा-मेरा कर रहा, ‘रोहित' यह संसार । चार दिनों की जिंदगी, आठ दिनों का बैर ।।
- रोहित कुमार ‘हैप्पी'
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