हिंदी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है। - मैथिलीशरण गुप्त।

होली व फाग के दोहे

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

भर दीजे गर हो सके, जीवन अंदर रंग।
वरना तो बेकार है, होली का हुड़दंग॥

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सबको कर काहे रहे, तुम होली में तंग।
घोट-घोट के पी रहे, देखो कैसे भंग ॥

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मिलकर सब करने लगे, होली पर हुड़दंग।
कोई फगुआ गा रहा, कोई घोटे भंग॥

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अभी तलक छोड़ी नहीं, दिल से उसने जंग।
यूं होली को आ गया, मुख पर मलने रंग ॥

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अपना गुस्सा छोड़िए, आओ खेलें संग ।
देखो अंबर में उड़े, हैं होली के रंग ॥

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बिन तेरे लगता हमें, जीवन ये बेरंग।
चाहे पिचकारी चले, चाहे उड़ते रंग ॥

- रोहित कुमार 'हैप्पी'

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