मोल करेगा क्या तू मेरा?
मिट्टी का मैं बना खिलौना;
मुझे देख तू खुशमत होना ।
कुछ क्षण हाथों का मेहमां हूं, होगा फिर मिट्टी में डेरा ।
मोल करेगा क्या तू मेरा ?
मूरत है मुझ-सी ही तेरी;
सूरत भी है मुझ-सी तेरी ।
घड़े सभी हैं एक चाक के, सब चित्रों का एक चितेरा ।
मोल करेगा क्या तू मेरा ?
रज से ही निर्माण हमारा,
रज से ही निर्माण तुम्हारा !
कौन मोल किसका करता है, अरे, यही तो है भ्रम तेरा !
मोल करेगा क्या तू मेरा ?
- भगवद्दत ‘शिशु'
[भारत-दर्शन का प्रयास है कि ऐसी उत्कृष्ट रचनाएं प्रकाशित की जाएँ जो अभी तक अंतरजाल पर उपलब्ध नहीं हैं। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए भगवद्दत ‘शिशु' की रचनाएं आपको भेंट। संपादक, भारत-दर्शन २७/१२/२०१७]