हिंदी अभियान

रचनाकार: विनीता तिवारी 

हिंदी जिसे देश में अपने 
मिला नहीं समुचित सम्मान 
हम विदेश में इसकी खातिर 
चला रहे अनगिन अभियान 

भाषा तो प्यारी है लेकिन 
सीख रहे हैं कितने?
गिनी चुनी आँखें अब इसमें 
देखा करती सपने
जन-जन की स्वरलहरी में 
अंग्रेज़ी का रहता गुणगान

हम विदेश में बैठे देखो
चला रहे अनगिन अभियान 

जिस भी विद्यालय में चाहूँ 
हिन्दी सीखे कोई 
अभिभावक के प्रश्न पूछते 
हानि-लाभ क्या होई?
क्या हिन्दी में मिल सकता है
सब के सब विषयों का ज्ञान?

हम विदेश में बैठे, फिर भी 
चला रहे अनगिन अभियान 

कभी भूल जाते नुक़्ते को
कभी चाँद में बिंदी
हिन्दी की उर्दू कर डाली 
और उर्दू की हिन्दी
शब्दों की उत्पत्ति और उच्चारण
का न कुछ अनुमान 

हम विदेश में बैठे देखो
चला रहे अनगिन अभियान 

बेहतर हो हिन्दी-उर्दू का 
भेद मिटे अब जड़ से
कभी कोई रस्ता निकला है 
बेबुनियाद अकड़ से?
सबको लेकर साथ चलेंगे 
तभी सफल होगा अभियान 

हम विदेश में बैठे, इस पर
चला रहे अनगिन अभियान

दक्षिण और पूरब को भी
समझाने की है ज़रूरत
वरना कौन ही जाने ऊँट 
ये बैठेगा किस करवट?
आपस के मतभेदों से 
निपटें तो बने कोई पहचान 

हम विदेश में रहने वाले 
चला रहे अनगिन अभियान

-विनीता तिवारी 
 वर्जीनिया, अमेरिका