हिंदुस्तान की भाषा हिंदी है और उसका दृश्यरूप या उसकी लिपि सर्वगुणकारी नागरी ही है। - गोपाललाल खत्री।

मनोदशा (काव्य)

Print this

Author: कैलाश कल्पित

वे बुनते हैं सन्नाटे को
मुझको बुनता है सन्नाटा
जीवन का व्यापार अजब है
सुख मिलता है, पाकर घाटा।

सेवानिवृति जगी जब जब भी
मन कानन की कली खिली है
जब जब कुछ दे सका किसी को
एक परिमित तृप्ति मिली है।

वैसे देने को था ही क्या
वैभव की भूखी दुनिया को!
किसको है अवकाश सुने जो
पिंजरे में बैठी मुनिया को?

फिर भी इस मुनिया ने जग को
कुछ तो मीठे बोल दिये हैं,
जीवन जीने के प्रतिमानों -
के रहस्य कुछ खोल दिये हैं।

तृप्ति प्राप्ति में नहीं, विसर्जन-
की प्रज्ञा पर सम्भावित है
स्थिति कुछ भी नहीं, ग्राह्यता-
के सरगम पर आधारित है।

- कैलाश कल्पित

Back

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें