कितना धुंधला कितना उजला तेरा जीवन देख
पगले दर्पण देख
दूजे के मुख पर क्या अंकित पढ़ने से क्या लाभ?
कथा अर्थहीन शब्दों की गढ़ने से क्या लाभ?
झोंक न मूरख बनकर घर घर अपना आँगन देख
पगले दर्पण देख
सच कहने की सच सुनने की कुछ तो आदत डाल
जिसमें तेरा स्वार्थ निहित है वह है माया जाल
जग तुझको झूठा लगता है किसके कारण देख
पगले दर्पण देख
तूने सब के दोष गिनाए अपना दिल भी खोल
दुनिया के बाजार में आखिर क्या है तेरा मोल
पूजा की थाली में खुद को करके अर्पण देख
पगले दर्पण देख
मान कसौटी अपने मन को और अपना कद नाप
निर्णय और निष्कर्ष का यह विष पी ले अपने आप
तन्हाई में क्या कहता है तुझ से यह मन देख
पगले दर्पण देख
मैं तो जग में बहुत बुरा हूँ मेरी बातें छोड़
आँसू की इक बूंद हूँ मुझको पत्थर से मत तोड़
कितने दाग़ लगे हैं इसमें अपना दामन देख
पगले दंर्पण देख
-नसीर परवाज़