मैं नहीं समझता, सात समुन्दर पार की अंग्रेजी का इतना अधिकार यहाँ कैसे हो गया। - महात्मा गांधी।

उल्लुओं की बस्ती में (बाल-साहित्य )

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Author: पंडित विष्णु शर्मा

एक वृक्ष पर एक उल्लू रहता था। उल्लू को दिन में दिखाई नहीं पड़ता, इसीलिए इसको दिवांध भी कहते हैं। उल्लू दिन-भर अपने घोंसले में छिपा रहता था। जब रात होती थी, तो शिकार के लिए बाहर निकलता था।

गर्मी के दिन थे, दोपहर का समय। आकाश में सूर्य आग के गोले की तरह चमक रहा था। बड़े जोरों की गर्मी पड़ रही थी। कहीं से उड़ता हुआ एक हंस आया और वृक्ष की डाल पर बैठकर बोला, "ओह, बड़ी भीषण गर्मी है। आकाश में सूर्य आग के गोले की तरह चमक रहा है।"

हंस की बात उल्लू के भी कानों में पड़ी। यह बोल उठा, "क्या कह रहे हो? सूर्य चमक रहा है। बिलकुल झूठ। चंद्रमा के चमकने की बात कहते तो मान भी लेता।"

हंस बोला, "चंद्रमा तो दिन में चमकता नहीं, रात में चमकता है। इस समय दिन है। दिन में सूर्य ही चमकता है। सूर्य का प्रकाश जब तीव्र रूप से फैल जाता है तो भयानक गर्मी पड़ती है। आज सचमुच बड़ी भयानक गर्मी पड़ रही है।" 

उल्लू व्यंग्य के साथ हँस पड़ा और बोला, "अभी तो तुम सूर्य की बात कर रहे थे, अब सूर्य के प्रकाश की बात करने लगे। बड़े मूर्ख लग रहे हो। अरे भाई, न सूर्य है, न प्रकाश। यह तो हमारे मन का भ्रम है।" 

हंस ने उल्लू को समझाने का बड़ा प्रयत्न किया कि आकाश में सूर्य चमक रहा है और उसके कारण भयानक गर्मी पड़ रही है, पर उल्लू अपनी बात पर अड़ा रहा। हंस के अधिक समझाने पर भी वह यही कहता रहा कि न तो सूर्य है, न सूर्य का प्रकाश है और न गर्मी पड़ रही है। 

उल्लू और हंस दोनों जब देर तक अपनी-अपनी बात पर अड़े रहे तो उल्लू बोला, "पास ही एक दूसरे वृक्ष पर मेरे सैकड़ों जाति-भाई रहते हैं। वे बड़े बुद्धिमान हैं। चलो, उनके पास चल कर निर्णय कराएं कि आकाश में सूर्य है या नहीं।" 

हंस ने उल्लू की बात मान ली। उल्लू उसे साथ लेकर दूसरे वृक्ष पर गया। दूसरे वृक्ष पर सैकड़ों उल्लू रहते थे। उल्लू ने अपने जाति-भाइयों को एकत्र करके कहा, "भाइयो, इस हंस का कहना है, इस समय दिन है और आकाश में सूर्य चमक रहा है। आप लोग ही निर्णय करें, इस समय दिन है या नहीं, और आकाश में सूर्य चमक रहा है या नहीं।" 

उल्लू की बात सुनकर उसके जाति-भाई हंस पर हँस पड़े और उसका उपहास करते हुए बोले, "क्या कह रहे हो जी, आकाश में सूर्य चमक रहा है? बिलकुल अंधे हो। हमारी बस्ती में ऐसी झूठी बात का प्रचार मत करो।" 

पर हंस चुप नहीं रह सका, बोला, "मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं। इस समय दिन है और आकाश में सूर्य चमक रहा है।" 

हंस की बात सुनकर सभी उल्लू कुपित हो उठे और हंस को मारने के लिए झपट पड़े। 

हंस प्राण बचाकर भाग चला। कुशल था कि दिन होने के कारण उल्लुओं को दिखाई नहीं पड़ रहा था। यदि दिखाई पड़ता, तो वे हंस को अवश्य मार डालते। उधर दिन होने के कारण हंस को दिखाई पड़ रहा था। उसने सरलता से भागकर उल्लुओं से अपनी रक्षा कर ली। हंस ने बड़े दुःख के साथ अपने-आप ही कहा, "यह बात सच है कि इस समय दिन है और आकाश में सूर्य चमक रहा है, पर उल्लुओं ने संख्या में अधिक होने के कारण सच को भी झूठ ठहरा दिया। जहां मूर्खी का बहुमत होता है, वहां इसी प्रकार सत्य को भी असत्य सिद्ध कर दिया जाता है। 

कहानी से शिक्षा

मूर्ख मनुष्य विद्वान की बात को भी सच नहीं मानता। मूर्षों की सभा में सत्य को भी असत्य ठहरा दिया जाता है। मूर्खी की बड़ाई से न तो प्रसन्न होना चाहिए और न बुराई करने से अप्रसन्न होना चाहिए, क्योंकि मूर्ख तो मूर्ख ही होते हैं।

[भारत-दर्शन संकलन]

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