मूर्ख मित्र

रचनाकार: भारत-दर्शन संकलन

किसी राजा के राज्य में एक बहुत बलवान बंदर था। वह बड़े-बड़े योद्धाओं को मत देता था। राजा ने उसकी ख्याति सुनी तो उसे अपना अंगरक्षक रख लिया। वह बंदर राजा के सेवक के रुप में महल मे रहने लगा। धीरे-धीरे वह राजा का विश्वास-पात्र बन गया। बंदर बहुत स्वामीभक्त था । अन्तःपुर में भी वह बेरोक-टोक जा सकता था ।

एक दिन जब राजा सो रहा था और बंदर उसे पंखे से हवा झोल रहा था तो बन्दर ने देखा, एक मक्खी बार-बार राजा की गर्दन पर बैठ जाती थी। पंखे से बार-बार हटाने पर भी वह उड़कर फिर वहीं बैठी जाती थी ।

बंदर को क्रोध आ गया। उसने पंखा छोड़ कर हाथ में तलवार ले ली; और इस बार जब मक्खी राजा की गर्दन पर बैठी तो उसने पूरे बल से मक्खी पर तलवार से प्रहार किया। मक्खी तो उड़ गई, किन्तु राजा की गर्दन तलवार के वर से धड़ से अलग हो गई। राजा वहीं ढेर हो गया। स्वामीभक्त बंदर को पछतावा हो रहा था किन्तु वह अब राजा को जीवित तो नहीं कर सकता था!

सीख: मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा!