हिंदी समस्त आर्यावर्त की भाषा है। - शारदाचरण मित्र।

बंदी पंछी | गीत (काव्य)

Print this

Author: सैयद मुतलवी फ़रीदाबादी


कब यह खुलेगी काली खिड़की, कब पछी उड़ जाएंगे
ऐसा मौसम कब आएगा उड़ उड़ कर जब गाएंगे !
इस पिंजरे की हर तीली सपने में आन जलाती है,
ध्यान से कब यह निकलेगी कब इससे रिहाई पाएंगे !

बरस रहे हैं आज तो हम पर ओले भी ओ' पत्थर भी,
छितिज में हैं कुछ छितरे बादल उमड़ के वे भी आयेंगे !
आयेंगे औ' छा जायेंगे आकाश के कोने कोने में,
पवन चलेगी ऐसी पंछी सब पिंजरे खुल जाएंगे !

-सैयद मुतलवी फ़रीदाबादी

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश