जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

उठ बाँध कमर (काव्य)

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Author: मौलाना ज़फ़र अली ख़ाँ

अल्लाह का जो दम भरता है, वो गिरने पर भी उभरता है। 
जब आदमी हिम्मत करता है, हर बिगड़ा काम संवरता है। 
उठ बाँध कमर क्या डरता है।
फिर देख ख़ुदा क्या करता है॥ 

बिखरी हुई कुव्वत तेरी है, सिमटी हुई हिम्मत तेरी है। 
वरना ये हुकूमत तेरी है, आलम की खिलाफ़त तेरी है॥
उठ बाँध कमर क्या डरता है।
फिर देख ख़ुदा क्या करता है॥ 

तू इल्म की दौलत लाया है, तहजीब सिखाने आया है। 
तू जब से जहाँ पर छाया है, दुनिया की पलट गयी काया है॥ 
उठ बाँध कमर क्या डरता है।
फिर देख ख़ुदा क्या करता है॥ 

गुलशन में बहार है आयी हुई, गरदूँ पै घटा है छायी हुई। 
फिरती है सबा इठलायी हुई, तकदीर है पलटा खायी हुई॥
उठ बाँध कमर, क्या डरता है।
फिर देख खुदा क्या करता है॥

-ज़फ़र अली ख़ाँ

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