अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।

उठ बाँध कमर (काव्य)

Print this

Author: मौलाना ज़फ़र अली ख़ाँ

अल्लाह का जो दम भरता है, वो गिरने पर भी उभरता है। 
जब आदमी हिम्मत करता है, हर बिगड़ा काम संवरता है। 
उठ बाँध कमर क्या डरता है।
फिर देख ख़ुदा क्या करता है॥ 

बिखरी हुई कुव्वत तेरी है, सिमटी हुई हिम्मत तेरी है। 
वरना ये हुकूमत तेरी है, आलम की खिलाफ़त तेरी है॥
उठ बाँध कमर क्या डरता है।
फिर देख ख़ुदा क्या करता है॥ 

तू इल्म की दौलत लाया है, तहजीब सिखाने आया है। 
तू जब से जहाँ पर छाया है, दुनिया की पलट गयी काया है॥ 
उठ बाँध कमर क्या डरता है।
फिर देख ख़ुदा क्या करता है॥ 

गुलशन में बहार है आयी हुई, गरदूँ पै घटा है छायी हुई। 
फिरती है सबा इठलायी हुई, तकदीर है पलटा खायी हुई॥
उठ बाँध कमर, क्या डरता है।
फिर देख खुदा क्या करता है॥

-ज़फ़र अली ख़ाँ

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश