प्रिय तुम्हारी याद में यह दर्द का अभिसार कैसा,
आँसुओं के हार से ही प्रीत का सम्मान कैसा!
प्रेम का प्रतिदान कैसा!
ले लिया काजल घटाओं को उमड़ती मस्तियों ने,
दृश्य को आतुर नयन में नीर का संचार कैसा!
प्रेम का प्रतिदान कैसा!
अग्नि रेखा-सी दमकती माँग का सिंदूर फीका,
सजन तुम बिन नित्य का ये देह में शृंगार कैसा!
प्रेम का प्रतिदान कैसा!
रोकती आँचल उड़ाने से, हवाएँ रूठती हैं,
विरहिनी की यातनाओं का उन्हें अनुमान कैसा!
प्रेम का प्रतिदान कैसा!
अनमनी बिंदिया सुहागिन रोज बतियाती अधर से,
बावरे, परदेसियों की प्रीत का अभिमान कैसा!
प्रेम की प्रतिदान कैसा!
क्या लिखूँ तुमको प्रिये मैं पीर की पायल बनी हूँ
नृत्य-नूपुर-भाव बिन अनुभाव का संचार कैसा!
प्रेम का प्रतिदनि कैसा!
-शारदा कृष्ण
[बरसों बरस अकेले]