हिंदी समस्त आर्यावर्त की भाषा है। - शारदाचरण मित्र।

चंद्रशेखर आज़ाद (काव्य)

Print this

Author: रोहित कुमार 'हैप्पी'

शत्रुओं के प्राण उन्हें देख सूख जाते थे
ज़िस्म जाते काँप, मुँह पीले पड़ जाते थे
                   देश था गुलाम पर 'आज़ाद' वे कहाते थे।

पल में बदल भेष फुर्र हो जाते थे
तंत्र खुफिया को, नाकों चने चबवाते थे
                   देश था गुलाम पर 'आज़ाद' वे कहाते थे।

'हूँ मैं आज़ाद और रहूंगा आज़ाद ही'
विप्लवी साथियों को, शान से बताते थे
                    देश था गुलाम पर 'आज़ाद' वे कहाते थे।

जीते-जी 'आज़ाद' को पकड़ कौन पाएगा ?
सुन सिंहनाद बड़े-बड़े हिल जाते थे
                    देश था गुलाम पर 'आज़ाद' वे कहाते थे।

भीलों के सखा निशाना ऐसा वे लगाते थे
देखें सब दंग, मुँह खुले रह जाते थे
                    देश था गुलाम पर 'आज़ाद' वे कहाते थे।

- रोहित कुमार 'हैप्पी'
  न्यूज़ीलैंड

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश