किसी जंगल में एक वृक्ष पर घोंसला बनाकर एक चिड़ा व चिड़िया का जोड़ा रहता था। चिड़िया ने अंडे दिये तो वह उसे सेह रही थी। इसी बीच धूप से परेशान एक मदमस्त हाथी उस वृक्ष की छाव में आ गया। अपने चंचल स्वभाव के कारण उसने पास की शाखा को तोड़ डाला। शाखा टूटते ही चिड़ियाँ के सभी अंडे टूट गए। घोसले का नामोनिशान नहीं रहा। असहाय चिड़िया विलाप करने लगी। चिड़िया को इस तरह दु:खी देखकर उसके साथी कठफोड़वा ने समझाते हुए कहा-- बुद्धिमान लोग विपत्ति के समय रोते-बिलखते नहीं, बल्कि धैर्य से काम लेते हैं।
चिड़िया को कठफोड़वा की बात तर्क-संगत लगी, लेकिन उसने उससे आग्रह किया कि वह हाथी को दंड देने में उसकी सहायता करे।
कठफोड़वा ने उसे सहायता करने का आश्वासन दिया। उसने चिड़िया को कहा-- वीणाख नाम की मेरी एक परम मित्र मक्खी है। मैं उसके साथ मिलकर कोई योजना बनाता हूँ। तुम मेरी प्रतीक्षा करो।
कठफोड़वा मक्खी के पास गया तथा चिड़िया की दुखद कथा से उसे जा सुनाई तथा उससे सहता का आग्रह किया।
मक्खी ने कठफोड़े की बात को रखते हुए कहा-- मित्र, मित्र होता है और फिर मित्र का मित्र भी तो मित्र ही हुआ। मैं आपके मित्र की सहायता अवश्य करूंगी। मेघनाथ नामक मेढ़क मेरा दोस्त है। हम सब साथ मिलकर योजना बनाते हैं।
शीघ्र ही मक्खी ने अपने दोस्त मेढ़क को बुला लिया। तीनों मिलकर शोक संतप्त चिड़िया के पास पहुंचे तथा काफी विचार-विमर्श के बाद हाथी को मार डालने की योजना बनाई।
वीणाख मक्खी ने कहा-- मैं दोपहर के समय उस दुष्ट हाथी के कान के पास जाकर मधुर आवाज निकालूँगी, जिससे हाथी मदमस्त होकर अपनी आँखे बंद कर लेगा। कठफोड़वा उसी समय अपनी चोंच से हाथी की आँखे फोड़ देगा। मेढ़क ने कहा- इस बीच जब वह प्यास से व्याकुल होकर जल की खोज में निकलेगा, तब मैं अपने परिवार के साथ एक गहरे गड्ढे में छिपकर "टर्र-टर्र' की आवाज निकालूँगाा। भ्रम में जब हाथी पानी के लिए हमारी तरफ आएगा, तब उसी में गिर जाएगा।
ठीक अगले दिन चारों अपनी योजनानुसार निकल पड़े। कठफोड़वा द्वारा आँख फोड़े जाने के बाद कष्ट और प्यास से तड़पता हुआ हाथी पानी के लिए उस गड्ढे की तरफ चला गया तथा उसमें गिर गया। भूख और प्यास से तड़पते हुए उसकी मृत्यु हो गयी। इस प्रकार चिड़िया ने अपने मित्रों की सहायता से हाथी के प्राण ले लिये तथा अपना प्रतिशोध पूरा किया।
सीख: साथ मिलकर बड़ा-से-बड़ा कार्य भी संभव हो जाता है। चिड़ियाँ अकेले उस दुष्ट हाथी का कुछ नहीं कर पाती।
[भारत-दर्शन संकलन]