हमसफर जब से चंदा हुआ है, रात इठला के ढलने लगी है।
भर के दामन में तारों के मोती, हौले हौले से चलने लगी है।।
हो रहा है मिलन चांदनी से, सूर्य की पीतवसना किरण का।
हट गया झीना झीना सा बादल सांझ के सुरमई आवरण का।
जैसे अल्हड़ कुंवारे नयन में अनछुई प्रीत पलने लगी है।
भर के दामन में तारों के मोती, हौले हौले से चलने लगी है।।
रात इठला रही है भला क्यों, रातरानी भी महकी हुई है।
जुगनूओं की चमक बढ़ रही है, रजनीगंधा भी बहकी हुई है।
किसकी जादू का इतना असर है सांस की लय मचलने लगी है
भर के दामन में तारों के मोती, हौले हौले से चलने लगी है।।
हर तरफ रोशनी का सफर है मुंह अंधेरे का काला हुआ है।
तुम हो छाए सनम जो हृदय में जिंदगी में उजाला हुआ है।
कसमसाती हुई याद अक्सर अब तो करवट बदलने लगी है।
भर के दामन में तारों के मोती, हौले हौले से चलने लगी है।।
हमसफर जब से चंदा हुआ है, रात इठला के ढलने लगी है।
भर के दामन में तारों के मोती, हौले हौले से चलने लगी है।।
-डॉ॰ शोभा श्रीवास्तव
राजनांदगांव, छत्तीसगढ़
ई-मेल : shobhashrivastava57@gmail.com
भर के दामन में तारों के मोती, हौले हौले से चलने लगी है।।
हो रहा है मिलन चांदनी से, सूर्य की पीतवसना किरण का।
हट गया झीना झीना सा बादल सांझ के सुरमई आवरण का।
जैसे अल्हड़ कुंवारे नयन में अनछुई प्रीत पलने लगी है।
भर के दामन में तारों के मोती, हौले हौले से चलने लगी है।।
रात इठला रही है भला क्यों, रातरानी भी महकी हुई है।
जुगनूओं की चमक बढ़ रही है, रजनीगंधा भी बहकी हुई है।
किसकी जादू का इतना असर है सांस की लय मचलने लगी है
भर के दामन में तारों के मोती, हौले हौले से चलने लगी है।।
हर तरफ रोशनी का सफर है मुंह अंधेरे का काला हुआ है।
तुम हो छाए सनम जो हृदय में जिंदगी में उजाला हुआ है।
कसमसाती हुई याद अक्सर अब तो करवट बदलने लगी है।
भर के दामन में तारों के मोती, हौले हौले से चलने लगी है।।
हमसफर जब से चंदा हुआ है, रात इठला के ढलने लगी है।
भर के दामन में तारों के मोती, हौले हौले से चलने लगी है।।
-डॉ॰ शोभा श्रीवास्तव
राजनांदगांव, छत्तीसगढ़
ई-मेल : shobhashrivastava57@gmail.com