नागार्जुन | Nagarjuna साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 12

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इनाम | कहानी

हिरन का मांस खाते-खाते भेड़ियों के गले में हाड़ का एक काँटा अटक गया। बेचारे का गला सूज आया। न वह कुछ खा सकता था, न कुछ पी सकता था। तकलीफ के मारे छटपटा रहा था। भागा फिरता था-इधर से उधर, उधर से इधऱ। न चैन था, न आराम था। इतने में उसे एक सारस दिखाई पड़ा-नदी के किनारे। वह घोंघा फोड़कर निगल रहा था। भेड...

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अकाल और उसके बाद

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास कई दिनों तक कानी कुतिया सोयी उनके पास कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्तकई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त
दाने आए घर के अन्दर कई दिनों के बाद धुँआ उठा आँगन के ऊपर कई दिनों के बाद चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद कौए ने खुलाई पाँखें कई दिन...

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भूले स्वाद बेर के

सीता हुई भूमिगत, सखी बनी सूपनखावचन बिसर गए देर के सबेर के बन गया साहूकार लंकापति विभीषणपा गए अभयदान शावक कुबेर के जी उठा दसकंधर, स्तब्ध हुए मुनिगणहावी हुआ स्वर्णमरिग कंधों पर शेर के बुढ़भस की लीला है, काम के रहे न रामशबरी न याद रही, भूले स्वाद बेर के
--नागार्जुन[1961]
 

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पीपल के पत्तों पर | गीत

पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनीनालियों के भीगे हुए पेट पर, पास हीजम रही, घुल रही, पिघल रही चाँदनीपिछवाड़े, बोतल के टुकड़ों पर---चमक रही, दमक रही, मचल रही चाँदनीदूर उधर, बुर्ज़ी पर उछल रही चाँदनी।
आँगन में, दूबों पर गिर पड़ी--अब मगर, किस कदर, सँभल रही चाँदनीवो देखो, सामने--पीपल के पत्तों पर फिस...

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बाक़ी बच गया अंडा | कविता

पाँच पूत भारत माता के, दुश्मन था खूंखारगोली खाकर एक मर गया, बाक़ी रह गये चारचार पूत भारत माता के, चारों चतुर-प्रवीनदेश-निकाला मिला एक को, बाकी रह गये तीनतीन पूत भारत माता के, लड़ने लग गए वोअलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच बच गए दोदो बेटे भारत माता के, छोड़ पुरानी टेकचिपक गया है एक गद्दी से, बाकी बच ...

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लोगे मोल? | कविता

लोगे मोल?लोगे मोल?यहाँ नहीं लज्जा का योगभीख माँगने का है रोगपेट बेचते हैं हम लोगलोगे मोल?लोगे मोल?
बेचेंगे हम सेवाग्रामसस्ता है गांधी का नामरघुपति राघव राजारामलोगे मोल?लोगे मोल?
आज़ादी के नोचे बालसंविधान की खींची खालबेशर्मी की गढ़ ली ढाललोगे मोल?लोगे मोल?
-नागार्जुन
[साभार - हज़ार हज़ार बाँहो...

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तीनों बंदर बापू के | कविता

बापू के भी ताऊ निकले तीनों बंदर बापू केसरल सूत्र उलझाऊ निकले तीनों बंदर बापू केसचमुच जीवनदानी निकले तीनों बंदर बापू केज्ञानी निकले, ध्यानी निकले तीनों बंदर बापू केजल-थल-गगन-बिहारी निकले तीनों बंदर बापू केलीला के गिरधारी निकले तीनों बंदर बापू के!
सर्वोदय के नटवर लालफैला दुनिया भर में जालअभी जिएंग...

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कालिदास! सच-सच बतलाना ! | कविता

कालिदास! सच-सच बतलाना ! इंदुमती के मृत्यु शोक से अज रोया या तुम रोये थे ? कालिदास! सच-सच बतलाना ?
शिवजी की तीसरी आँख से निकली हुई महाज्वाला से घृतमिश्रित सूखी समिधा सम कामदेव जब भस्म हो गया रति का क्रंदन सुन आँसू से तुमने ही तो दृग धोये थे ? कालिदास! सच-सच बतलाना रति रोयी या तुम रोये थे ?
वर्षा...

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बापू महान | कविता

बापू महान, बापू महान!ओ परम तपस्वी परम वीरओ सुकृति शिरोमणि, ओ सुधीरकुर्बान हुए तुम, सुलभ हुआसारी दुनिया को ज्ञानबापू महान, बापू महान!!
बापू महान, बापू महानहे सत्य-अहिंसा के प्रतीकहे प्रश्नों के उत्तर सटीकहे युगनिर्माता, युगाधारआतंकित तुमसे पाप-पुंजआलोकित तुमसे जग जहान!बापू महान, बापू महान!!
दो च...

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तेरे दरबार में क्या चलता है ? | कविता

तेरे दरबार मेंक्या चलता है ?मराठी-हिन्दीगुजराती-कन्नड़ ?ताता गोदरेजवालीपारसी सेठों की बोली ?उर्दू—गोआनीज़ ?अरबी-फारसी....यहूदियों वाली वो क्या तोकहलाती है, सो, तू वो भीभली भाँति समझ लेतीतेरे दरबार में क्या नहींसमझा जाता है !मोरी मइया, नादान मैं तोक्या जानूँ हूँ !सेठों के लहजे में कहूँ तो&md...

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घिन तो नहीं आती है ? | कविता

पूरी स्पीड में है ट्रामखाती है दचके पे दचकेसटता है बदन से बदन-पसीने से लथपथछूती है निगाहों कोकत्थई दाँतों की मोटी मुस्कानबेतरतीब मूँछों की थिरकनसच-सच बतलाओघिन तो नहीं आती है?जी तो नहीं कढता है?
कुली मजदूर हैंबोझा ढोते हैंखींचते हैं ठेलाधूल-धुआँ भाप से पड़ता है साबकाथके-मांदे जहाँ-तहाँ हो जाते है...

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म‌ंत्र

ॐ श‌ब्द ही ब्रह्म है..ॐ श‌ब्द्, और श‌ब्द, और श‌ब्द, और श‌ब्दॐ प्रण‌व‌, ॐ न‌ाद, ॐ मुद्रायेंॐ व‌क्तव्य‌, ॐ उद‌ग‌ार्, ॐ घोष‌णाएंॐ भ‌ाष‌ण‌...ॐ प्रव‌च‌न‌...ॐ हुंक‌ार, ॐ फ‌टक‌ार्, ॐ शीत्क‌...

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नागार्जुन | Nagarjuna का जीवन परिचय