एक सपना | काल्पनिक रेखाचित्र

रचनाकार: नागार्जुन | Nagarjuna

Munshi Premchand-Sapna by Nagarjun

गोरी सूरत, घनी-काली भौहे, छोटी-छोटी आँखें, नुकीली नाक, बडे-बडे बाल...

गुछी हुई विरल मूछोंवाला यह मुस्कराता चेहरा किसका है?

यह चेहरा, प्रेमचंद का है।

लगता है, अभी हँसने वाले हैं। 

लगता है, अभी ज़ोरों के कहकहे लगाएंगे।

कॉपी और कलम मेरे सामने हैं। मै प्रेमचंद के सामने अभी-अभी आकर बैठा हूँ।

प्रेमचंद की यह छवि, लगा, सहसा सचेतन हो उठी है...

ज़ोरों के ठहाके...

“नहीं जी, अब मैं बिलकुल स्वस्थ हूँ। तुम रत्तीभर फिक्र मत करो...मगर यह कॉपी-कलम क्यों लाये हो?”

"जी, आपके बारे मे कुछ लिखना था.."

"मेरे बारे मे?"

"जी, बच्चो के लिए। किशोरॉन के लिए।"

अब पेमचद ने जोरों के कहकहे लगाये। बोले--"मैं तो भई, ड़र गया था कि कागज कलम लेकर आया है. जाने क्या-क्या नोट करके ले जायेगा, जाने क्या-क्या छपवा देगा अखबारों में!"

"आप अखबारवालों से डरते है?"

'हाँ भई, बहुत डरता हूँ..."

"वे आपका फोटो भी तो छापते हैं।"

इस पर प्रेमचद मुस्कराते रहे। फिर बोले, "एक-एक बीड़ा पान का जमा लें फिर बैठें... वो देखो,  आ गयी वो पान लेकर.."

फिर वही कहकहे...

गर्दन फेरकर मैंने शिवगनी जी को देखा और दोनों हाथ जोडकर बोला "प्रणाम, अम्मा!"

"मस्त रहो बेटा!' तुम्हारी आवाज सुनी तो पान लगा लायी। बाबू जी ने फिर ज़ोरों के ठहाके लगाये...
शिवरानी देवी मुसकुराती रही। पान देकर चली गयी।

वह बोले, "अब हम गाँव में ही बस गये। लमही की मिट्टी का मोह हमसे भला कैसे छूटता? गुजारे के लिए किताबों की बिक्री से पैसे आ जाते हैं। धुन्नू और बन्नू ने अपना-अपना धंधा संभाल लिया है। बेटी और दामाद सागर, मध्य प्रदेश, में है और ठीक हैं। स्कूल और कॉलेज बद होने पर कभी-कभी परिवार के सारे बच्चे यहा इकट्ठे हो जाते हैं। तब लमही वाले हमारे इस घर मे स्वर्ग उतर आता है...”

प्रेमचद ने फिर ठहाके लगाये तो मेरी नीद टूट गयी और अब जो संसार सामने था वह बनारस की पड़ोस वाली बस्ती 'लमही' नही, पुरानी दिल्ली का कश्मीरीगेट वाला मुहल्ला था।

-नागार्जुन 

[बाल जीवन माला, पीपुल्स पब्लिशिग हाउस (प्रा.) लिमिटेड, 1962]

टिप्पणी : बाबा नागार्जुन ने इस रचना के अंत में लिखा है--"मुझे सपने में अभी उम रात प्रेमचद के ठहाके सुनायी पड़े। 1932 में, यानी उनतीस वर्ष पहले, काशी मे दो-तीन बार उनसे मिला था। बाते की थी, ठहाके सुने थे।"