सुबह-सुबह जब पढ़ रहा होता हूँ अख़बारपीठ पर आकर लद जाती है बेटीऔर अपने नन्हें-नन्हें हाथों से मेरी गर्दन को लपेट करझूला सा झूलते हुएअक्षर सीख लेने के नये-नये जोश मेंज़ोर-ज़ोर से पढ़ती हैअखबार की सुर्खियाँकभी जिज्ञासा, कभी कौतूहल, कभी गुस्से से भरकरअक्सर अपनी मनचाही खबर छोड़कर…विस्तार से पढ़...
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