ज्यों निकल कर बादलों की गोद से ज्यों निकल कर बादलों की गोद से थी अभी इक बूँद कुछ आगे बढ़ी,
चंदा मामा, दौड़े आओ दूध कटोरा भरकर लाओ। उसे प्यार से मुझे पिलाओ
छ्प्पै पड़ने लगती है पियूष की शिर पर धारा। हो जाता है रुचिर ज्योति मय लोचन-तारा।
खेलो रंग अबीर उड़ावो लाल गुलाल लगावो । पर अति सुरंग लाल चादर को मत बदरंग बनाओ । न अपना रग गँवाओ ।
देख कर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं रह भरोसे भाग्य के दुःख भोग पछताते नहीं काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं
ज्यों निकल कर बादलों की गोद से थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी। सोचने फिर-फिर यही जी में लगी,
मान अपना बचावो, सम्हलकर पाँव उठावो । गाबो भाव भरे गीतों को, बाजे उमग बजावो ॥ तानें ले ले रस बरसावो, पर ताने ना सहावो ।
जला सब तेल दीया बुझ गया है अब जलेगा क्या । बना जब पेड़ उकठा काठ तब फूले फलेगा क्या ॥1॥ रहा जिसमें न दम जिसके लहू पर पड़ गया पाला ।
अपने अपने काम से है सब ही को काम। मन में रमता क्यों नहीं मेरा रमता राम ॥ गुरु-पग तो पूजे नहीं जी में जंग उमंग।
हैं जनम लेते जगह में एक ही, एक ही पौधा उन्हें है पालता। रात में उन पर चमकता चांद भी,