अनिल जोशी | Anil Joshi साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 8

Author Image

हैरान परेशान, ये हिन्दोस्तान है

हैरान परेशान, ये हिन्दोस्तान है ये होंठ तो अपने हैं, पर किसकी जुबान है
जुगनू मना रहे हैं जश्न, आप देखिए पर सोचिए सूरज यहां क्यों बेजुबान है
तुलसी, कबीर, मीरा भी, जब से हुए हैं 'कौन' पूछा किए कि क्या यही हिन्दोस्तान है
बौने से शख्स ने कहा यूं आसमान से आती है अंग्रेजी उसे, वो आसमान है
रिश्तों क...

पूरा पढ़ें...

क्या तुमने उसको देखा है

वो भटक रहा था यहाँ - वहाँढूंढा ना जाने कहाँ - कहाँजग चादर तान के सोता थापर उन आँखों में नींद कहाँ
तीरथ जल का भी पान कियापोथी-पुस्तक सब छान लियाउन सबसे मिला जो कहते थेहमने ईश्वर को जान लिया
दिल में जिज्ञासा का बवालमन में उठते सौ-सौ सवालसमझाते वो पर समझें नातर्कों के फैले मकड़-जाल
ज्ञानी - ध्यान...

पूरा पढ़ें...

भटका हुआ भविष्य

उसने मुझे जब हिन्दी में बात करते हुए सुना,तो गौर से देखाऔर अपने मित्र से कहा--'माई लेट ग्रैंडपा यूज्ड टु स्पीक इन दिस लैंग्वेज'इस भाषा के साथ मैं उसके लिए संग्रहालय की वस्तु की तरह विचित्र थाजैसेदीवार पर टंगा हुआ कोई चित्र था जिसे हार तो पहनाया जा सकता हैपरगले नहीं लगाया जा सकता।
उसके जीवन का फल...

पूरा पढ़ें...

घर

शाम होते ही वो कौन-से रास्ते हैं, जिन पर मैं चल पड़ता हूँ वो किसके पैरों के निशान हैं, जिनका मैं पीछा करता हूँ इन रास्तों पर कौन सी मादा महक है किन बिल्लियों की चीख की कोलाहल की प्रतिध्वनियां गूंजती है कानों में लौटते हुए रास्ते में पहचाने हुए यात्री ना सुखी, ना दुखी, ना प्रसन्न, ना उदास सिर्फ एक...

पूरा पढ़ें...

रणनीति

छुपा लेता हूँअपने आक्रोश को नाखून मेंछुपा लेता हूँअपने विरोध को दांतों में बदल देता हूँअपमान को हँसी मेंआत्मसम्मान पर होने वाले हर प्रहार से सींचता हूँ जिजीविषा को नहीं! ना पोस्टर, ना नारे, ना इंकलाबमन के गहरे पोखर सेढूंढ कर लाता हूँ शब्द पकाता हूँ उसे भीतर की आंच पर बदलता हूँ कविता मेंलाकर रख दे...

पूरा पढ़ें...

बेटी को उसके अठाहरवें जन्मदिन पर पत्र

आशा है तुम सकुशल होगीशुभकामनाएं और तुम्हारी भावी यात्रा के बारे में कुछ राय
सुनो तुम्हें क्या पता है कितुम यहाँ से एक गंध लेकर गई थी अनचाही गंध
गंध तुम्हारी मां के मसालों की उसकी झिड़कियों उसके प्यार की गंध किताबों के शैल्फ की मेरे स्टडी रूम केदरवाजे, खिड़कियों से छन -छन कर तुम्हारे भीतर चाहे -...

पूरा पढ़ें...

जीवन से बाजी में, समय देखो जीत गया

जीवन से बाजी में, समय देखो जीत गया
आयु का अमृत घट, पल-पल कर रीत गयाजीवन से बाजी में, समय देखो जीत गया
प्रश्नों के जंगल में , गुम-सा खड़ा हूँ मैंमौन के कुहासे में, घायल पड़ा हूँ मैंशब्द कहाँ, अर्थ कहाँ, गीत कहाँ, लय कहाँवह एक स्वप्न था , यह एक और जहाँख़ाली गलियारा है, और हर तरफ धुंधपरिचित क्या,...

पूरा पढ़ें...

जैसे मेरे हैं...

जैसे मेरे हैं, वैसे सबके हों प्रभुउसने सिर्फ आँखें नहीं दी,दृष्टि भी दी,चारों तरफ अंधकार हुआ,दे दिया ,ह्रदय में मणि का प्रकाश,सुरंग थी, खाईयां थी और अंधेरी सर्पीली घाटियां,तो मन में दे दिया,अनंत आकाश।
इधर थी बाधाएं, चुनौतियाँ तो उधर दे दिए संकल्प, बेपनाह आत्मविश्वासदस रास्ते बंद किए,तो सौ द्वार ...

पूरा पढ़ें...

अनिल जोशी | Anil Joshi का जीवन परिचय